Dreams

Tuesday, March 23, 2010

स्पंदन! Copyright ©.


कहते हैं
अक्षर ब्रह्मा है
और ब्रह्मास्त्र भी
विचारों की अभिव्यक्ति का
सूर्योदय और सूर्यास्त भी।
नए दिन के साथ फूट रहे
अंकुर मेरी कल्पनाओ के
व्यक्त कर रहे यह अक्षर
मेरे अन्दर का स्पंदन
और कह रहे
अभिनन्दन अभिनन्दन !

स्पंदन की ऊर्जा को
सही रूप से मार्गदर्शन
दे रहे कल्पना के घोड़े
और रचना के प्रवाह को
बनाये रखे हैं
ताकि शालीनता न कसमसाये
और मौलिकता की गर्दन न मरोड़े
इस शक्ति से ही मैं बना हूँ
और यह ही जीवन का स्रोत है
मेरे विचारो की अस्थिरता
और हर नयी रचना
की चंचलता
इस ही स्पंदन से ओतः प्रोत है।

छुपा था यह स्पंदन
अब जाके ज्ञात हुआ
मेरे मनोबल, विश्वास
और तीव्र अवलोकन का
स्रोत मुझे प्राप्त हुआ
स्फूर्ति की बिजली दौड़ पड़ी
अब मेरी नसों में
और कुछ कर गुजरने
का उन्माद हुआ.
अब खुली हवा में जी
सकूँगा
न होगा कोई परिमाण
न कोई बंधन
बस मैं और
मेरा स्पंदन
मैं और मेरे अन्दर का स्पंदन!

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