Dreams

Monday, March 8, 2010

गणित और जीवन....Copyright ©.


गणित सिखाने बैठ गए

एक दिन बापू हमार

एक हाथ में छड़ी थी उनकी

खाने को हम तय्यार।

पहले “ का” को कीजिये

दूजा भागा रास

तीजा ऋण-धन कीजिये

यह ही भिन्न की सार।

एक माशा है आठ रत्ती

एक तोले में बारह माशा

सीख ले सरपट तू बेटा

यह अंको कीअनोखी भाषा ।

गयी हमारे सरके ऊपर

सारी गणित की परिभाषा

अंक गणित या बीज गणित

रेखा गणित का टूटा ढांचा।

गणित नहीं सीख सका मैं

बापू थे परेशान

कैसे बेटा आगे बढेगा

कैसे बनेगा महान ?


भूल गया कुछ समय तक

मैं उन काले अंकों को

लाख अरब, खरभ

नील और उन शंखो को।

सोचा अंकों में क्या रखा है

जीवन में इसका क्या मोल

बहुत कुछ और है जो ढंग को है।

निकल पड़ा मैं खोज बीन में

जीवन के असीम ज्ञान को

हर अनुभव के नए रंग और

हर निश्चितता और अनुमान को

लोक व्यवहार और आत्म - ज्ञान को।

प्रेम के सागर में अपनी कलम दुबाई

भौतिक वस्तुओं की भी बीन बजाई

नैतिकता का बिगुल बजाया

और शिष्टाचार की नज़्म गायी


यह सब करते करते एक दिन

ऐसे बैठा था

पिता को अपने, स्मरण कर रहा

सोचा क्या क्या सीखा था।

नैतिक रूप से उनके पदचिन्नोह पे

चलता था मैं हरदम पर, उनके एक

पाठ के अभिन्न सार को अब तक न मैं सीखा था।

गणित मुझे वोह सिखा रहे थे

जीवन का था जो एकमात्र आधार

चाहे कितना कड़वा हो सच

पर वोह ही था मूलाधार।


शून्य से ही जन्मा है जीवन

शून्य में ही जाएगा

बीच में इसके

गणितीय समीकरण को

जोड़ घटा और गुना भाग से तू

संतुलित बनाएगा।

मानुष का हर एक कदम

भी सितारों की निरपेक्ष गणित

पे टिका है

और आज समाज का हर सदस्य

हरी पत्तियों की संख्या पे बिका है।

अर्थशास्त्र हो या अन्य आंकड़े

या फिर हो सम्पन्नता का नाप

सत्ता में आने के लिए

दल बदलते विधायक हों या

बढती जनसँख्या का अभिशाप।


जहाँ देखो सब गणित है

पत्नी की मांग से लेकर

हर चीज़ में अडाती

सरकारी टांग तक

भूखे की गुज़ारिश से लेकर

बाबू की सिफारिश तक

सब गणित है,

जितनी जल्दी बूझ जाओ

तोही जीवन फलित है।

नहीं तो सारा ज्ञान

धरा रह जाएगा

और तुम्हारा जीवन

दशाम्बलाव के पहले का नहीं

बाद का शून्य कहलायेगा।


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