Dreams

Saturday, April 17, 2010

राज भोग और शाही पकवान ! Copyright ©.


ख्याली पुलाव

या वास्तविकता की खिचड़ी

जीवन का मुर्ग मुसल्लम

या सोच के सागर से निकाली तली मछली?

हास्यप्रद है जीवन की खीर

या फिर चटपटी तंदूरी मुर्गी , गंभीर?

खान पान के शौक़ीन

हमने सोचा पता लगाएं

कि क्या है पाक विधि ये जीवन

कौन रसोइया और कौन पकवान?


जीवन की परात पे

बचपन का मासूम आटा

पिता ने शैतानी पे कान मरोड़े और

माँ ने लगाया करारा चांटा

संसकारो के पानी से गूंथ के

पाला पोसा और इन्सानियत बो दी

पलोथन बहिन के प्यार का

और खींची उसकी चोटी

पिता के गरमा गरम गुस्से के तवे पे

माँ ने स्नेह के चिमटे से सेकी रोटी.

किशोर अवस्था की दाल पकाएं इस से पहले

पानी चढ़ा कढाई पे

यारों ने चूहले पे चढ़ाया

खेल कूद से फुरसत न दी

दूर किया पढाई से

हरदम हसी मजाक, खेल कूद

हर दम रेलम पेल

डाल दिया शिक्षकों ने उस पे

नियम का गरमा गरम कडवा तेल

फिर पहली प्रेमिका ने डाला उसमे तडके का जीरा

माँ-पिता कहते रह गए

हमारा बेटा इन चक्करों में नहीं पड़ता

हीरा है हीरा।

लड़का हाथ से न निकले और न हो कोई बबाल

दो-दो सीटी मार के दाल को रखने दिया उबाल

फिर उस उबली डाल को नियम के तेल में

और जीरे के तडके और यारो के खेल में

करने लगे इंतज़ार

नसीहतों के मसाले डाले

और हिलाया अच्छी तरह बार बार

आने वाले जीवन के लिए किया होशियार

लो बन गयी

अपनी बलिक होने की गरमा गरम दाल।

अब समय था बनाने का विशेष पकवान

बालपन की रोटी पक गयी, किशोर होने की बन गयी दाल

तय्यारी हो गयी थी खाने की , टपकने लगी थी लार

क्युंकी हो चला था मैं जवान।

इस बार शुद्ध घी में पकना था

पढाई हो गयी थी पूरी,

पर पहले नौकरी के “ हरे सलाद” को चखना था.

चख के हमने नीम्बू डाला

नमक मिर्च और अनेक प्रेमिकाओं का चाट मसाला

सजा दिया थाली में

ऊपर से ढक्कन रख्खा

बचा कुचा फेंका नाली में।

फिर सोचा मीठे की तय्यारी करलें

पकवान तो बनता रहेगा

पहले एक हाथ शादी का लड्डू रख्खा

सोचा घी पिघलने में समय लगेगा

अब पिघले घी में डाली राई

और खन खन करछी घुमाई

फिर डाली उसमे शुद्ध सफ़ेद

वैवाहिक जीवन की मलाई।

डाले उसमे नर्म पनीर के चौकोर टुकड़े

काजू किसमिस, बादाम भी डाले

बच्चे जैसे अपनी बाहें जकड़े

फिर मसाले डाले और लगाया बघार

और हो गया अपना पकवान तैयार।


बैठे जब हम खाने को यह सब

सजाके सुन्दर तख्ती पे

पाया हमने कि

दाल हो गयी ठंडी , रोटी हो चली कड़ी

हो गए हम साठ के

और बूढी हड्डियां बोल पड़ी।

इस से पहले हो जाए जवानी की दाल ठंडी

और बचपन की मासूम रोटियां होने लगें कड़ी

मूह में डाल पकवान को तू भी

बीच बीच में चखते जा

इससे पहले नीम्बू कड़वा हो

और सलाद हो जाए बासी

फांक मार तू घडी घडी

ताकि हो न जाए देर ज़रा भी।

इन्ही तत्वों से जीवन का राज भोग बना है

तय्यारी में न समय नष्ट कर

तयारी के लिए पूरा जीवन धरा है।

क्या मतलब जब तू इसको सिर्फ तक पायेगा

ठंडा, बासी हो चला तो कैसे तू चख पायेगा

बस समय निकाल, आसन बना और

निवाला बस मूह में डाल

और देख कैसे यह जीवन का पकवान

करता स्वाद से तेरे तालू पे कमाल

करता स्वाद से तेरे तालू पे कमाल

करता स्वाद से तेरे तालू पे कमाल।


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