Dreams

Saturday, April 17, 2010

रोटी Copyright ©.


जीवन के अर्ध सत्य का पूरा शून्य!
ब्रह्माण्ड के आकार और विश्व की गोलाई की परिधि ....
विकास पे प्रश्न चिन्ह ...
गरीब की आँखें और अमीर की सलाखें...
रोटी सत्य हो हो चली है ...
बोल पड़ी है....
इतनी विशेष हो चली रोटी कि.....
आज दूरभाष पे चर्चित हो चली है॥

आराध्य की प्रतिमा आज गोल हो चली है
प्रेमिका का आलिंगन और उसकी श्रद्धा
इसी गोलाई पे निर्भर हो चुकी है
प्रशासन की गद्धी और पुजारी की भक्ती
सब रोटी की तरह गोल हो चली हैं
क्या कहें इतनी गोल है सब चीज़ें
कि अब सब भावों को भिन्न भिन्न करने
की परेशानी नहीं होती
यह भी रोटी वोह भी रोटी
सब है रोटी
रोटी!

मारा मारी इस रोटी की
हर स्तर पे होने लगी
भूख हो गयी किसी की चौगुना
और मानवता भी खोने लगी
भाई मारे भाई को
और गले काटे बेटे ने
जिस पिता ने उसको सींचा था
मिटा दिया उस माली को
माँ की भी फाड़ी छाती बस
बटोरने कुछ रोटी के टुकड़ों को
लाज बेच दी भाइयों ने
चमड़ी के ठेकेदारों को।

सोने चांदी का न अब रहा मोल
एक पलड़े पे इमान धरम
और एक पलड़े पे रहे हे रोटी तोल
दुनिया गोल, इंसानियत गोल
क्या बस यह ही है जीवन का मोल?
रोटी रोटी चीखें सब बस
एक गेनुं की रोटी के लिए बस
बना रहे लहू का घोल
और बजा रहे आतंक का ढोल!

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