Dreams

Sunday, May 9, 2010

बूढा बचपन या जवान बुढापा ? Copyright ©


जीवन एक मार्ग है

जिसके अंत में शायद एक द्वार है

शायद एक मंजिल

शायद एक पड़ाव है

लेकिन उस तक पहुँचते पहुचते

लाखों लडखडा दिए

लाखों भटक गए, लाखों घबराये

लेकिन लाखों ने अपने ध्वज भी लहरा दिए

होता विकल्प हरदम आपका

बूढा बचपन या जवान बुढापा


उस पल के इंतज़ार में

वो पाने की चाह में

बचपन से ही जुट जाते

श्रम , एकाग्रह चितता

और विश्वास का बीड़ा उठाते

और निरंतर चलने वाली इस जंग का

बचपन से शंख्नाध करवाते

परन्तु वो जो मिथ्या

वो जो भ्रम है

वो जो दूर क्षितिज पे है

पर लगता आश्रम है

उसके लिए क्यूँ यह भूलना

कि दिल तो कुछ नहीं जानता

दिल तो बच्चा है

थोडा कच्चा है

एकदम सच्चा है

उसे जहाँ ढाल दो वो

वहां चल देता

उसे बच्चा रहने दो

लक्ष्य के बोझ से उसे न दबा दो

उसे बहने दो

नहीं तो बचपन समय से पहले

बूढा हो जाएगा

अपनी मासूमियत खोके

झूठा हो जाएगा

समझदारी की परत से लेप दिया जायेगा

और फिर इस ज्वाला में फ़ेंक दिया जाएगा

बचपन बूढा हो जाएगा


अनिवार्य है जीवन में लक्ष्य का होना

पर उससे अनिवार्य है हर एक पल को न खोना

हर पल में सैकड़ों साल को जीने का लक्ष्य बनाना

मीठे सुर में इसे गाना

बारिश में भीग जाना

परिंदों सा आकाश में उड़ जाना

छोटी चीज़ों में मुस्कुराना

अपने आप को किसी के काम में लाना

तमन्नाओ को पंख लगाना

जीने की इच्छा को अर्घ्य चढ़ाना

और मदमस्त हाथी सा झूम जाना

और बुढापे को भी जवान बनाना

बुढापे को भी जवान बनाना

बुढापे को भी जवान बनाना!

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