Dreams

Sunday, June 6, 2010

हलके गहरे Copyright ©


विचारों की भिन्नता से

एक दिन हैरान था मैं

मस्तिष्क की उधेड़ बुन

से परेशान था मैं

कैसे कैसे होते यह ख़याल

कभी पतंग उड़ाते

कभी गीत गाते

एक क्षण को कैसे स्वर्ग बनाते

अगले ही पल भयभीत विश्व की

काली तस्वीर बनाते

कभी कल्पना करते

मृत्यु के बाद , विधाता से मिलन

कभी ऐसे अद्भुत भव्य तस्वीर

का करते वर्णन

जैसे हो सजी बैठी मिलन को आतुर

नयी दुल्हन

कभी होते वो दुल्हे के सेहरे

कभी हलके

कभी गहरे.


विचार, कल्पना और सोच

सोचा मैंने

कि नियंत्रण कर पाउँगा

जहाँ , जब ले जाना चहुँ

क्या वह पहुँच जाऊंगा

कि विचार सिर्फ एक प्रतिबिब्म

है आवलोकन का

एक छवि जो

चारो ओर हो रही घटनाओ से

जन्म लेती है

या स्वतंत्र नदी सी कल कल

धाराप्रवाह बहती है

क्या इन पे किसी का वश है

और है तो वो कैसे लायें

कि सिर्फ निर्मल विचार ही

मन में आयें

यदि ऐसा हो पाए तो

जिन लोगों ने नष्ट कर दी श्रृष्टि

हथगोलों और नफरत से

उनके विचारों और कल्पनाओ से

हम हमेशा के लिए बंद कर पाएं

लेकिन शायद यह संभव नहीं

यदि होता तो इस विश्व की

इतिहास की , जनकल्याण के प्रयास की

छवि कुछ और होती

और न रहते हम तुम बहरे

हलके गहरे


यदि किसी दिन मैं अपने इन

हलके गहरे

भिन्ना भिन्ना विचारों को

कल्पनाओं की बहारों को

नियंत्रण कर पाऊं

केवल जनकल्याण और मानव

विकास का ही मन में दीप जलाऊं

तो विश्वास है मुझे कि

एक दिन आने वाले भविष्य के लिए

बदल देंगे इतिहास

न कोई जंग होगी उसमे

न कोई भूख और न कोई प्यास

केवल उत्थान होगा

केवल विकास

हप पन्ने पे खुशियाँ होंगी

हर ओर हर्षौल्लास

पेहेनेगा मानवता जीत का सेहरा

कुछ हल्का , थोडा गहरा

हल्का गहरा

हल्का गहरा!

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