Dreams

Tuesday, July 27, 2010

भोले... Copyright ©


मन प्रसन्न हो या फिर

शोकाकुल

चेतना डरी हो या

प्रफुल्ल

विश्वास कांम्पा हो

या जागा हो

मौत का सन्नाटा हो

या जीवित होने का

शोर

अंतिम संध्या हो

या भोर

समय अनुकूल हो

या भाग्य प्रतिकूल

आत्मा प्रसन्न हो या

रूद्र

जेब खाली हो या

भरे हो झोले

बस कर आँखे बंद

और बोले तेरा कंठ

भोले

भोले…


देवाधिदेव

ऐसे ही नहीं वो कहलाता

रूद्र है तो क्या हुआ

एक क्षण में प्रसन्न हो जाता

जीवन के विष को

अपने कंठ मात्र में समां के

नीलकंठ है हो जाता

वर्णन तो उसका हर ग्रन्थ हर

पोथी में है

स्त्रोत भी कई लिखे गए

दशानन ने भक्ति का

प्रमाण दिया तो

कई उसके नाम पे बिके गए

पर तुम्हारे मेरे लिए

उसका क्या है सन्देश

उस से जुड़ने का क्या है

संकेत

कैसे करें उस से परिचय

कैसे मन के द्वार खोलें

बस स्वच्छ ह्रदय से करे आह्वाहन

बस पुकारें

भोले ….

भोले


यह सत्य है

मिथ्या नहीं

वो दर्शन दे जाता है

और न दिखाई दे कभी तो

शंकर बनके

भिन्न भिन्न रूपों में

तेरे समक्ष आ जाता है

देखो शिव को

शंकर की अनुभूति करो

डमरू के स्वर को सुन लो

त्रिशूल को दंडवत करो

वो बस चाहे तुम पुकारो

उसका नाम

कलयुग के इस गतिमय जीवन में

व्यस्त दिनचर्या में एक बार बस

ह्रदय से बोलो हर हर महान

न विश्वास हो मुझपर तो

करके देखो स्वयं यह प्रयोग

अपनी भागम भाग में

आशुतोष को भूल गए हम लोग

नाम बदल देना मेरा यदि

सच्चे मन से तूने हो पुकारा

और तुझे वो दर्शन न दे

न तेरे ज्ञान के द्वारे खोले

एक बार पुकार लगा तो

भोले

भोले

भोले

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