Dreams

Wednesday, August 4, 2010

2010 की अगस्त क्रांति Copyright ©


जैसे ही अगस्त आया है

वैसे ही सब कवियों ने

तिरंगा उठाया है

और स्याही में कलम डुबो के

सब को यह दिलासा दिलाया है

कि “हम भूले नहीं हैं

भारत हमारा है”

काला है , गोरा है

अभिशप्त है तो क्या हुआ

दरिद्र है तो क्या हुआ

भ्रष्ट है तो क्या हुआ

बाकी न सही पर

अगस्त आते ही हमे याद

ज़रूर आया है

भारत हमारा है।



शब्दावली से सुसज्जित

हर अगस्त सब लेखक, कवी

यह एक बार अवश्य याद दिलाते हैं

कि हम कितने पिछड़े हैं और

हमारा कैसा चेहरा है

अगस्त क्रांति की लहर जो दौड़े

पंद्रह को समाप्त हो जाती

उसके बाद सब गूंगे, सब बहरे हैं

जिन्होंने पूरा जीवन न्योछावर कर दिया

मिटटी पे

लहू को पानी की तरह बहाया

लुटा दी जवानी इस धरती पर

उनको बस पंद्रह दिन यह याद करें

उनके साहस और बलिदान की गाथा गायें

और इतिहास के पन्नो पर, जितना कम से कम हो सकता है

बस उतना ही समय “बर्बाद” करें।



हे पंडितों , हे कवियों ओर लेखको

ज़रा अपनी कला और निखारो

उनके बलिदान की कलम को

उनके लहू में दुबोके

उस खुशबू को बिखारो

बात न करो कभी भी कि क्या बुरा है

इस देश में

बात करो बस उत्थान की

शब्द जाल को ऐसे बुनलो कि

पुनः क्रान्ति की होड़ लगे

आज भी भारतीय के भीतर

बलिदान का भाव जगे

और स्वतंत्रता दिवस हर दिन

मनाये

वो दिया दिन रात जले



जन्मसिद्ध अधिकार स्वतंत्रता

के लिए कई शव गिरे हैं

कई मन राख विसर्जित हुई है

कई आत्माएं परमात्मा बनी है

स्मृति उनकी हर पल करना और

उस स्मृति से कुछ सीख समझ के

इस देश को जागरूक हर दिन करना

यह ध्येह है कवियों का

और यह ही माध्यम है

यह वो ध्वनि है

जो गूँज उठेगी सत्तावन सी

यदि हर पल उसे गुनगुनायेंगे

और खड्ग से लहरायेंगे शब्द

यदि हम उन्हें सब कानो तक हर पल

पहुँचायेंगे



जिस ध्वज के लिए बैरागी हो चला था

एक समय यूवा,

उस यूवा को आज हम लोगों को

पुनः जगाना है

जो मात्र एक कपडा बनकर एह गया है

उसे पुनः राष्ट्रीय ध्वज का

दर्ज़ा दिलाना है

यह दायित्व हम कवियों पे है

कलम से बस उम्मीद निकले

कटाक्ष के बाण न निकले

प्रत्यंचा की गूँज बस निकले

आने वाला समय किस ओर ढलता है

हमारा भविष्य किस दिशा में निकलता है

इसके उत्तरदायी हम कवी, हम लेखक हैं

हमारे हर शब्द, हर विचार

मार्गदर्शक बने

जो गलतियाँ इतिहास में हुई है हम से

वो आगे न दोहराईं जाएँ



तो आओ प्रण करें कि

केवल स्वतंत्रता दिवस

भर में ही हम न भारत को

याद करें

पर सोचें हर पल इसको कैसे बदलें

कैसे इसका श्रींगार करें

शब्दों से ऐसे प्रतिपल याद दिलाएं

हम वर्त्तमान को

कि बदलें आओ भारत का भविष्य

और सही रूप से

स्वतंत्र हो जाएँ

स्वतंत्र हो जाएँ

स्वतंत्र हो जाएँ. !

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