Dreams

Sunday, October 10, 2010

पहले गोली फिर लाश! Copyright ©

सारे पुलीस वाले

भ्रष्ट हैं

पुलीस सक्षम नहीं

इसीलिए हम त्रस्त है

पुलीस सचेत नहीं

इसीलिए हमारा देश

आतंक-ग्रस्त है

यह पहली प्रतिक्रिया

होती है हमारी

जब हम खाकी वर्दी

को देखते हैं

जब हम उस हाड मॉस के

जीवित मनुष्य को

घ्रिनास्पद रूप से

देखते हैं

सीधे मूह उस से बात नहीं करते

उस से सद्भावना नहीं रखते

उसे मनुष्य नहीं मानते

हम उसके बारे में कितना है जानते?

हमारे हिस्से आती हैं

प्रेम, उम्मीदें…. “काश”

उसके हिस्से

पहले गोली…फिर लाश!



कभी सोचा ?

कि हमारे कुकर्म

हमारी गन्दगी

का भार कौन उठाता

बिखरी आंतें

बहते खून

और गली हड्डियों को

कौन करता साफ़?

और फिर भी नहीं चिल्लाता

नितदिन जो केवल

रंडी, भडवे, गोली, लाशें

खून, मानव मॉस

नर्संघर जो देखेगा

वो मुस्कुराएगा कैसे?

जो हर समय अपनी

जान दाव पे लगा देने

को प्रतिबद्ध है

जिसका जीवन

केवल गन्दगी को साफ़

करने के लिए नियुक्त है

वो कैसे गायेगा गाना

उसका जीवन केवल

चोर – उचक्के,

शव-गृह और थाना



पुलीस भ्रष्ट है

पुलीस घूस खाती है

अरे कैसे न खाए

जब हमारे तुम्हारे

आयकर का दसवां हिस्सा

भी इन तक नहीं पहुँचता

अपने परिवार को कैसे पाले

जब उसे यह ही पता नहीं

वो घर ज़िनदा पहुंचेगा

या सफ़ेद कपडे में लिपटा

क्या पैसा क्या घूसखोरी

उसकी है मजबूरी

मैं नहीं कहता कि यह सही है

मैं नहीं कहता कि यह साफ़ है

कि उन्हें सौ खून माफ़ है

पर भूख तो उसे भी लगती है

उसका भी तो खून लाल है

लाशें गोली और थाना

क्या

यह उसके वर्त्तमान का जोड़

क्या

यह उसके भविष्य का घटाना?



उन्हें गालियाँ देना बंद करो

उनके तनाव, उनकी पीड़ा को समझो

उनके बलिदान के आगे शीश झुकाओ

चंद – एक कि वजह से

पूरी पुलीस को बदनाम न बनाओ

तुम अपना धर्म भूल जाओगे

वो नहीं

तुम भारत को बेच खाओगे

वो नहीं

एक बार उस को गले लगाके देखो

एक बार कहो “शाबाश”

क्यूंकि उसके हिस्से केवल आती है

पहले गोली फिर लाश

पहले गोली फिर लाश

पहले गोली फिर लाश!

2 comments:

Ghulam Kundanam said...
This comment has been removed by the author.
Ghulam Kundanam said...

पुलिस को संचमुच पब्लिक फ्रेंडली बनना होगा, हर किसी को डंडे से हांकना ठीक नहीं है, नक्सल समस्या का एक कारण यह भी है. आदिवासी, गवार लोग नहीं जानते माओ किसके खिलाफ लड़ा था, तानाशाही के खिलाफ या लोकतंत्र के खिलाफ पर वे पुलिस के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हैं. जनता भी पुलिस के साथ सहयोग नहीं करती, इस वजह से भी पुलिस वाले चिडचिडे हो जाते हैं. भ्रस्ताचार निचे से नहीं ऊपर से ठीक करना होगा.