Dreams

Tuesday, February 1, 2011

जश्न-ए-ज़िन्दगी.Copyright ©


सलाखों में क़ैद हो तू
चाहे खुले आसमान का हो परिंदा
मसले फूलों की महक हो
चाहे हो कालिक पुते चेहरे से शर्मिंदा
मना ले जश्न-ए-ज़िन्दगी



खाली या भरे होने का मत कर इंतज़ार
जीने के मौके नहीं आते बार बार
इस खुशबू की सांस ले
और गिन ले तारे हज़ार
यह चमकता दिन न आएगा
यह काली रात फिर न आएगी
एक ही जोश से
मना ले जश्न-ए-ज़िन्दगी



जश्न-ए-ज़िन्दगी
जश्न-ए -बहार
साँसों का मेला
धडकनों की पुकार
खून का दौड़ना
और रगों का खुमार
खुदा की यह सारी बंदगी
मना ले मौला के नाम
जश्न-ए-ज़िंदगी
जश्न-ए-ज़िंदगी
जश्न-ए-ज़िंदगी!!

1 comment:

गुंज झाझारिया said...

alwys excellent from my side...
bus aise hi likhte raho..