Dreams

Tuesday, May 3, 2011

क्या हुआ था उस अन्धकार में !!! Copyright ©


और उस दिन मैं डूब गया
काले अन्ध्रेरे में
और उस दिन मैं सूख गया
नीरसता की चादर में
मुझे था गर्व कि मैं
स्तम्भ था बहुतों का
लाठी था और दीपक भी
परन्तु उस दिन सूरज बुझ गया


सब ओर सन्नाटे का शोर था
मृत आत्माएं चीख रहीं थी
हारे हुए लोगों की टोली
आंसुओं में भीग रही थी
और इस सब में मैं भी आ पहुंचा था
झुक चुका था सर जो कभी ऊंचा था
नज़र नहीं मिली किसी से
न ह्रदय धड़का
चहुँ ओर था कालापन डर का
क्या होगा इस अँधेरे में
मैं चिल्ला उठा, तिलमिला उठा
सोचा सब सुन लेंगे
मुझे पकड़ लेंगे
समझ लेंगे
मगर मानो सब मेरी काया को
भांप न सकते थे
मेरे कम्पन को नाप न सकते थे
और मैं सुन्न था


इस काले अँधेरे में फिर
कहीं से एक बूँद टपकी
प्यासे मन को तर कर गयी
जैसे मृगत्रिष्णा की तलाश में
जल मिल जाए
भक्त को आराध्य मिल जाए
इन्द्रधनुष का छोर मिल जाए
बरसात से पहले नाचता मोर मिल जाए
क्या थी यह बूँद
यह थी अनुभूति
आत्मा के परमात्मा से मिलने की
जो कहते हैं केवल मृत्यु पर है होती
पर मैं जीवित था
स्व की शक्ती से असीमित था
तो फिर क्या थी यह बूँद


यह थी पुकार परमात्मा की
मेरी स्वयं की आत्मा की
कि तू कस्तूरी लिए घूमता है
और न जाने कहाँ कहाँ ढूंढता है
मैं तो तेरे अन्दर हूँ समाया
तूने झाँका और पाया
और तू इस अँधेरे में क्यूँ आया
यह पूछ रहा होगा
तो कहीं न कहीं यह उत्तर बूझ रहा होगा
तो सुन , तेरे अन्दर जो भण्डार है
जो मैंने तेरे अंकुर में फूँका था
वोह प्रचूर्ण मात्रा में है
जितनी कठिन राहें हैं इस जीवन में
उतनी ही मखमली चादर हैं वहाँ
जितने काँटे हैं उस से कहीं अधिक
फूल हैं वहाँ
बस तू भूल जाता है
और यह शूल हो जाता है
और मैं जानता हूँ तू फिर भटकेगा
फिर अटकेगा
पर मैं हूँ
बस झाँक अन्दर और मैं हूँ


बस फिर क्या था
उस काले अन्धकार में भी
मैं चमक उठा
उस आधी नींद से भी मैं
गूँज उठा
मैं चमकूँगा ईश की रौशनी से
तो जग चमकेगा
और फिर एक बार यह अन्धकार आ धमकेगा
पर क्या हुआ यदि वह आये
यह उजाला उस तम को दूर भगाए
जो रात बीती है
कोई बात नहीं कि वह फिर आये
पर
वह पुनः यह ऊर्जा लाये
वह पुनः यह ऊर्जा लाये
वह पुनः यह ऊर्जा लाये!

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