Dreams

Friday, June 3, 2011

ब्रिहन्नाल्ला!! Copyright ©


ऐसा क्लिबा एक युग में

एक बार ही जन्मा होगा
तृतीय प्रकृति होने पर भी
जिसे इतना सम्मान मिला होगा
घाघर चोली ओढ़े
एक हाथ में मृदंग
ऐसे जिसने गांडीव थामा
कि कौरव भी रह गए दांग
गन्धर्वों से शिक्षा लेके
ऐसे स्त्री सा जो चलता था
बाहू-बल ऐसा जैसे अन्दर
ज्वाला मुंखी जलता था
अज्ञात वास में ऐसा
जादू चला दिया
और क्लिबो के घ्रंस्पद
दर्जे को सुसज्जित बना दिया

नारी की गरिमा और बाहुबल पुरुष का
ऐसा अर्जुन बन बैठा था जब गुमनाम सा
तब उसके अन्दर एक शक्ति ने लिया जन्म
वोह जो उसको अजर बनाने वाली थी
उसकी प्रत्यंचा की गूँज
विश्व में गूंजने वाली थी
इस धैर्य शक्ति को संभाले ब्रिहन्नाल्ला
अज्ञात में छुपी रही(हा)
और जग को उस क्लिबे ने फिर पर्थ दिया

हम सबके अन्दर वोह क्लिबा है बैठा
बंद मस्तिष्क उसका अज्ञात वास
बस पहचानने की देर है
उस ब्रिहन्नाल्ला की शक्ति को नहीं पहचाना
तो अज्ञात ही रह जायेगी(गा)
और पार्थ कभी महाभारत में न निकलके आएगा
तो उसे निकालो बाहर
सुनो उसके गांडीव की प्रत्यंचा की ध्वनि
उठाओ ब्रह्मास्त्र
और निकलो युद्द पे
यह ही है यथार्थ,
और तुम्हारी(आ) मस्तिष्क का
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ
ब्रिहन्नाल्ला ही है पार्थ!!

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