Dreams

Tuesday, August 2, 2011

कतरे कतरे में आहुति Copyright ©


कतरे कतरे में उम्मीद भरी थी
बूँद बूँद में था विश्वास
छलनी सीने , निर्जीव आँखों से भी
नही गयी जीने की आस
बहाया लहू तूने धीरे धीरे ऐसे कि
निरर्थक रह गया मेरा प्रयास






हर टपकती बूँद लहू की शीश तुझे झुकाती है
पर तुझे यकीन नही आता खुदा कि हर बहती बूँद प्राण ले जाती है
मेरा शीश नतमस्तक है उठा खड़ग और कर दे कल्म एक बार ही
बार बार की मृत्‍यु देना तेरे चरित्र को नही भाती है


हर बार आज़मा लेता आस्मा मुझे अनायास
हर बार प्यासा छोड़ देता यह सागर
हर बार कदम बढ़ते हैं उम्मीद भरे तो
तोड़ देता ,तू ,खुदा मेरे विश्वास की गागर


प्रमाण चाहिए तुझे मेरी निष्टा का
तो बतला मुझे क्या करूँ न्योछावर
ऐसे लहू बूँद बूँद ना निकाल
खाली हो जाएगा मेरी श्रद्धा का सागर


तेरी ज्वाला को मैं तो चहु ओर फैलता हूँ
तेरा परचम तो मैं गाँव गाँव लहराता हूँ
तेरे आशीष से , विश्वास से तो मैं औरों के दीप जलाता हूँ
तुझे क्यूँ विश्वास नही होता कि मैं तो हर बार तेरे दर ही आता हूँ


फिर क्यूँ हर बार मुझे आज़माने का आनंद तू लेता है
हर बार क्यूँ खून चूसते घाव तू देता है
क्यूँ करता हर बार आज़माइश मेरे सपनो की
हर बार कैसे तू इस सब में इतने मज़े ले लेता है


ज़रा देख तो सही एक बार मेरी ओर और बतला मुझे
इस टपकते लहू की नदियाँ बह चली हैं
बूँद बूँद करके पूरी काया ढह चली हैं
मुरझाअए पत्ते सा मैं पड़ा न तेरे कदमो में
फिर भी तेरे चरणों में मेरी आहुति चढ़ चली है
फिर भी तेरे चरणों में मेरी आहुति चढ़ चली है
फिर भी तेरे चरणों में मेरी आहुति चढ़ चली है

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