Dreams

Tuesday, February 21, 2012

फिर आया हूँ ! Copyright ©


चला गया था लहरों के संग
सीखने इस दुनिया के ढंग
करतब सारे, सारे रंग
पर मेरा तो भाग्य लिखा है
धारा के विपरीत तैरने का
लहरों को चीरने का
न कि ठहरने का
तो जब लगा तुम्हे कि मैं गायब हूँ
और खो गया मैं रीति रिवाजों में
जब लगा तुम्हे कि विलुप्त हो गयी मेरी काया
और बंद हो गया दरवाजों में
फिर वापिस आया हूँ मैं
फिर से ज्योत जलाने को
आओ मेरे पीछे हो जाओ
मैं आया पुनः राह दिखाने को


क्या बताऊँ कैसे कैसे मंज़र मैंने देखे
कितनी पगडंडियों पे चला हूँ
कितने सूरज मैंने सके
कितनी जंगों में मैंने लहू बहाया
और कितने माओं के आँचल को सवारा
कितने मीठे स्वाद चखे हैं
कितने शव मैंने ढके हैं
इन सब के बाद मैं आया हूँ
फिर से ज्योत जलने
अपने जीवन को सब की लाठी
सोये मन को फिर जगाने


आओ मेरे पीछे तुम भी
घबराओ मत क्या मंजिल होगी
काँटों की शय्या शायद
शायद मखमल की कम्बल होगी
फिर आया हूँ तुम्हारे लिए मैं
भटक न जाये ताकि कोई
यह बतलाने फिर से सबको
शक्ति है तुम्हारे अन्दर सोयी


खून बहे तो गम मत करना
आग दिखे तो तुम मत डरना
मन मंदिर के अन्दर विश्वास जगा के
फिर अमृत के ही घूँट भरना
जब जब तुम मुर्झाओगे मैं
माली बन बन सीचुंगा
जब जब तुम घबराओगे मैं
लक्ष्मण रेखा खीचूँगा
पर गिरने का डर न हो तुमको
यह मैं सिखला जाऊंगा
जब जब मन में कौतुहल होगा
मन मंदिर में समां जाऊंगा
फिर आया हूँ तुमको मैं
नयी राह दिखाने को
फिर आया हूँ मैं तुमको
एक बार फिर जगाने को


फिर आया हूँ
फिर आऊंगा
युगों युगों में
समां जाऊंगा
मैं तुम्हारे अन्दर का
विवेक हूँ
सुनो मेरी , नहीं तो
मैं फिर चिल्लाऊंगा
फिर आया हूँ
फिर आऊंगा
युगों युगों में
समां जाऊंगा!

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