Dreams

Monday, April 2, 2012

क्षमा दान की सुगंध ! Copyright©


भक्ति मार्ग में चलने को हूँ मैं अब अग्रसर
पग बढाने को आतुर हूँ, झुका हुआ है मेरा सर
अंतिम पग क्या होगा, यह तो वह ही जानेगा
प्रथम पग क्या होगा, मेरा ह्रदय कैसे मानेगा






भक्ति मार्ग का पहला पग होगा माया का त्याग
मोह से मुक्ती होगी , इन्द्रियों के जाल से निकाल होगा ,त्रुटियों का परित्याग
दान से आसान त्याग की परिभाषा मुझे नहीं अभी ज्ञात
पहले नेहलाऊंगा मन को भक्ति में, ठंडी करूँगा थोड़ी अन्दर की आग


दान करूँ तो क्या करूँ , पहले किसको दान करूँ
किसकी भक्ति में सर झुकाऊं, किसका पहले ध्यान करूँ
यह प्रश्न था मन में मेरे, और उत्तर मिला नहीं
एक बगीचे में बैठ गया मैं, सोचा प्रकृति से आरम्भ करूँ


क्यारियों में फूल थे और, हरियाली थी चरों ओर
तितलियाँ मदमस्त उडती उडती, शांत करती सारा शोर
मन में मेरे टीस उठी, कि कैसे समझूंगा दान का अर्थ
कैसे अहम् की मृत्यु होगी, कैसे होगी आत्मा की भोर


फिर चला मैं आगे तो बिन चाहे एक फूल को रौंध दिया
शूल उठा मन में मेरे तो उसका हाथों में गोंद लिए
पुछा मैंने उस से, कि कैसे मैं दान करूँ
बोला वह कि बैठ भक्त, तुझमे मैं दान करने का भाव भरूँ


सूंघ अपने जूते की एढी, जिसने मुझको रौंदा था
जहाँ मेरा स्थान था , जहाँ मेरा घरौंदा था
मेरी मसले जानी की सुगंध अभी भी ढी में है तेरी
यह ही क्षमा दान का पहला सबक, यह ही है तेरी सीढ़ी


जिसने तुझको रौंद दिया हो, तेरा जीवन उधेड़ दिया
तू उसे क्षमा अपना प्रदान कर
वह तुझे चाहे मार गिराए
तू उसे गले लगाके, क्षमा दान कर


क्षमा दान ही ब्रह्म दान है
क्षमा से ही खुलते द्वार , जो अब तक थे बंद
उसमे ही सार छुपा है
उसमे ही ईश की सुगंध


सुगन्धित कर जीवन उन सबका जिसने तुझपे घात किया
जिसने तुझे ठेस पहुंचायी, जिसने प्रतिघात किया
ईश क्षमा में बसा हुआ है, उसी की सुगंध है
उसकी भक्ति करनी है तो , मन तेरा क्षमा को प्रतिबद्ध है

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