Dreams

Monday, June 4, 2012

मयूर नृत्य Copyright©

 
मन के गिद्धों ने मन के मयूरों को नोच डाला
सीने में पंजों के खंजर और पीठ पे चोंचों का भाला
तड़पत जाए मोर, पंख ना फैला पाए
सावन लहू लुहान, बरखा करे मन में तेज़ाबी छाला

मयूर मुस्कुराया, गिद्ध हुआ हैरान
पूछा , मृत्यु के घाट पे है तू निकल रहे तेरे प्राण
तू मुस्कुराए कैसे, कैसे है चेहरे पे मुस्कान
मयूर की लहू लुहान अंगड़ाई का आनंद उठाता गिद्ध भी घबरा गया
पीछ हट वो एकाएक शरमा गया

' जब मन मयूर हुआ था तो पंख फैले थे बिना सावन,
मन मयूर नृत्य सा सुंदर था, हुआ था निर्मल पावन
गिद्धों ने तो पहले भी हत्या का प्रयास किया था
गिद्ध केवल दशानन हो पाया, हो पाया केवल रावण
मैं तो राम हूँ, निरंतर बहुँगा
चाहे तू तीर मारे मैं सब सहूँगा
हे गिद्ध तुझे अपने लहू का रस पान इसलिए करवाया है
क्यूंकी चाहे तू हो रावण चाहे दशानन
तेरे भीतर भी 'श्री राम' समाया है
मेरा लहू पीकर तू भी मयूर हो जाएगा
मैं फिर सावन आते नाचूँगा
और तू मेरे संग पंख फैलाएगा!!"

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