Dreams

Monday, August 27, 2012

विजय गीत Copyright©




मेरा शक़ यकीन में बदला है
मेरा भाग्य, कीचड़ मे कमल सा चमका है
सोने का सही परंतु मेरे गले मे
अकेलेपन का तमका है

जब मैने अपनी राह तय की थी
और ठानी थी अग्रसर होने की
जब मुझे ग्यात था, कि
बात ज़रूर निकलेगी काँटों पे सोने की
और जब मैं फिर भी निकल पड़ा था सफ़र में
सोचते हुए कि राह पकडूँगा अकेला मगर
पीछे हो लेंगे हमसफ़र
मैं हाथों में दीप ले कर चलूँगा
और दूर होगा अंधकार
मेरे सपने लेंगे आकार
पीठ थपथपाएगा संसार
मगर ना मालूम था कि
जिनके आगे चल रहा था मैं
उनकी ओर मेरी पीठ थी
खंजर उनका था, और यह ही रीत थी
कि जो आगे होगा उसे जीत का सेहरा तब मिलता है
जब पीछे वालों से उसका आगे होना ना झिलता है
और वो ऐसे खंजर मारते हैं जिससे आगे वाला
पीछे मुड़कर देखे
और उसके इस बात पे पीछे वेल आँखें सेकें

तो जीता हूँ मैं, परंतु हूँ अकेला
जीत एक मानसिक स्थिति है, ना कि मेला
काँटों की शय्या है, ना कि फूलों के बेला
जीत कहिए तो तय्यार रह
झुंड मे नही, अकेला बह
अकेले पं के झांपड सह
पर चल, रुक मत,जीत
"मैं जीता हूँ, अकेला हूँ, पर जीता हूँ"
यह कह


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