Dreams

Saturday, October 19, 2013

सुदर्शन (c) Copyright




दृष्टि और दृष्टिकोण में अंतर मात्र से
मानव महमानव बन जाए
तिमिर की बेला तो हटाए दिया भी
पर केवल सूर्य ही तिमिरारि कहलाए

दर्शन दिशाहीन हो तो प्रदर्शन बन जाए
चक्र भीतर का उत्तेजित हो तो सुदर्शन बन जाए
दिशा का ही सब खेल है, समय की ही सब चाल
दिशा सही तो गतिमय जीवन, दिशा बदले तो दुखदाई घर्षण बन जाए

आधार सही हो तो साधारण भी असाधारण कहलाए
विचार विवेक से हो उत्पन्न तो श्लोक-रूपी उच्चारण हो जाए
आत्म मंथन से अमृत निकलेगा, कह गये ऋशी मुनि प्राचीन
आत्म बोध ही अजर-अमरता का कारण बन जाए

समय चक्र और काल निर्णय बस यह हमे सिखलाए
अंदर झाँको , अंदर ताको, बाहर एक दृष्टि भी ना जाए
मुक्तिपथ की बस एक डगर है जो केवल
भीतर के ओर जाए

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