Dreams

Monday, December 15, 2014

मशालों में !! © copyright



 
 
ना तीरों में, ना तलवारों में
ना बरछी में , ना भालों में
कुछ अलग ही होता है
इन जलती हुई मशालों में


युद्धों से जीते गये हैं सिंघासन
आकशों,  धरती में और पातालों में
झुकते शीश, कटे देह 
लाल रक्त की धारा बही है, 
कई कई परनालों में
पर हृदय पर तो ध्वज लहराए हैं केवल 
जलती हुई मशालों नें



जहाँ खड़ग की धारों ने
भय से धरती धोई है
बारूदी विस्फोटों नें
निराशा हृदय में बोई है
भूखंडों पर विजय ध्वज
लहराया तो है कई सम्राट विशालों नें
पर आशा के बगीचे तो सीँचे हैं
बस जलती हुई मशालों ने



नरभक्षी गिद्ध छुपे हुए हैं
निर्मल बगुलों की ख़ालों में
निराशा के गड्ढे खुदे हुए हैं
स्वार्थ की कुदालो से
अंधकार की बेला को आओ
मिलकर हम तुम दूर करें
हथियार छोड़ के, अहंकार तोड़ दे
दूर करें इन जलती हुई मशालों से



ना तीरों में, ना तलवारों में
ना बरछी में , ना भालों में
आने वाले कल की आशा छुपी हुई है
इन जलती हुई मशालों में

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