Dreams

Wednesday, July 8, 2015

जाना है अभी ... Copyright



आसमान गिर रहे हैं जो
उनका भार उठाना है अभी
धसती मानवता को तुझे
धरातल तक फिर से लाना है अभी
बवंडर बनते हवाओं के वेग को
वश में कर जाना है अभी
धाराओं को मोड़ना है तुझे
पानी हो अपनी गति से बहाना है अभी
भस्म करते ज्वालामुखी के मूह पर
शीतल गंगाजल गिराना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
बहुत मुस्कानें बिखेरनी है तुझे
बहुतों को गले लगाना है अभी
शोर है जो इतना उस से ही धुन छेड़नी है तुझे
हर एक स्पंदन को एक सुर में लाना है अभी
बुझना धर्म नही है तेरा
तुझे जग को चमकाना है अभी
इस धरती, इस आकाश इस समंदर को ही नहीं
पूरे ब्रह्मांड में अपना रंग चढ़ाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
जो रूठ गये हैं तुमसे
तुझे उन्हे मानना है अभी
जो ना उम्मीद से निरुत्तर हैं
उन्हे उम्मीद का उत्तर पहुँचना है अभी
सोए हुए विवेक को सबमें
फिर से जगाना है अभी
इंद्रधनुष के छोर जो बिछड़े हुए हैं
तुझे उन्हे फिर से मिलवाना है अभी
हार गया है कोई जो
उसे फिर से उम्मीद दिखलाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
 
 
पतझड़ के पत्तों में रंग भरके
फिरसे  बसंत बनाना है अभी
घनघोर भयावह रातों को
अपने तेज से चमकाना है अभी
निष्प्रेम हृदय में पीड़ा हटा
प्रेम के पुष्प उगाना है अभी
भाई, पति, बेटे, यार दोस्त का
धर्म तुझे निभाना है अभी
बेरंग महफिलें फीकी पड़ी हैं देख
उसे अपनी कूची से रंगाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी
थकना विकल्प नहीं है तेरे लिए
तुझे बहुत दूर जाना है अभी


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