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Monday, November 23, 2015

हवा ही बदनाम है (C) Copyright



हवा ही बदनाम है
इतिहास बदल जाते है
ख़ूँख़ार इरादों से
सियासतें ढह जाती हैं
अधूरे वादों से
तलवार की धार पे लगा लहू
गवाही देता रहे प्यास की
गद्दी के नशे की, तख्त की आस की
इतिहास जानता है
यह इंसानों का ही काम है
पर इसके लिए भी , बस
हवा ही बदनाम है

शीश कट गये, 
तख्त पलट गये
कई कई गुनाह
यूँ ही घट गये
पर इल्ज़ाम लगाए
जब जब इतिहास ने
तो उम्मीदवार 
किसी पन्ने में छाँट गये
रक्त ही इतिहास के पन्नो
की स्याही, लहू ही उसका दाम है
पर इसके लिए भी, बस
हवा ही बदनाम है

पूर्वाई बन बन हवा
प्रेमिका की लट उलझाए
तूफान बनकर अश्वों
पर वीरों को सवारी करवाए
रेगिस्तान की रेत भी
इसी हवा की गुलाम है
पवन रूप मे सदियों 
से जो परिंदों को झुलाए
मौत का संदेश लाते ही
वो बदनाम हो जाए
पूर्वाई से फूँक बनी
तो सब का इसपर इल्ज़ाम है
सब के लिए , बस
हवा ही बदनाम है 

7 comments:

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2015/12/2015.html

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर लेखन ।

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर ...इतिहास बनते देर नहीं लगती

कमल said...

इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html

मुकेश कुमार सिन्हा said...

बेहद सुन्दर

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

Unknown said...

sabhi mitron ko dhanyvaad